शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

पीछा करते अनगिनत सवाल

मैंने देखा था
उस बच्ची का दर्द
जो शिकार बनी थी
हैवानों की भूख का
पिल पड़े थे
एकसाथ छह-सात
नोचने-बकोटने को
शरीर घायल
मसली-कुचली
नन्हीं जान, सिसकती
कोमल अंगों से रक्तस्राव
बेसुध,बदहवास
किंतु आंखों में कई सवाल
सवालों से बचती मैं
ढांढस मात्र दे आयी
लेकिन, अनगिनत सवाल
पीछा कर रहे थे मेरा
सहमति, असहमति का पेंच
तो कसा जा सकता है महिलाओं पर
लेकिन अबोध बच्चियां
जिनके अंग भी खिल ना सके थे
उन्हें रौंदने का तर्क
क्या देगा यह समाज?
बलात्कार के बाद मार दी गयी
बच्चियों के शव पर आंसू
बहाने तो सब आते हैं
बलात्कारियों को रोकने कोई नहींं
क्यों?
आखिर वे भी तो इसी समाज का हिस्सा हैं
आकाश से तो नहींं टपकते बलात्कारी?

रजनीश आनंद
15-09-17

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