सोमवार, 4 सितंबर 2017

बस प्रेम जीवित हो...

जाने -अनजाने
मैं जो बेवजह
पूछ बैठती हूं
बेतुके सवाल
कभी सोचा तुमने
मैं ऐसा क्योंं करती हूं
कोई गुमान नहीं ं
बस सहज प्रेम
चिंता तड़प है
तुम्हारे मुख से
गायब हंसी को
लौटा लाने की
स्त्रीमन की बेचैनी
पर तुम्हें यह
भाता नहीं
तुम्हें तो दुराव पसंद है
प्रेम आलिंगन नहीं
यही सही, मेरे लिये
तुम्हारे होने का एहसास
काफी है, चाहे पास हो या दूर
बस प्रेम जीवित हो...

रजनीश आनंद
04-09-17

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