शनिवार, 23 सितंबर 2017

इस नवरात्रि यही संकल्प...

मैं एक पत्रकार हूंं, इसलिए खबरें लिखती हूं, ताकि वह खबर आम जनता तक पहुंचे और वह अपने आसपास हो रही घटनाओं से अवगत हो सके. डिजिटल मीडिया में हूं, इसलिए खबरों को जल्दी से जल्दी पाठकों तक पहुंचाने की हड़बड़ी होती है. खबरें एक पत्रकार के लिए प्राणवायु हैं, उसकी नसों में दौड़ते लहू  के समान. लहू ( खबरों) का संचार बंद, तो पत्रकार 'डेड' हो जाता है. इसलिए पत्रकार खबरों से रोमांचित होता है,  लेकिन कई बार दुर्घनाएं भी होती हैं, लोग शोक में होते हैं. उस वक्त भी सूचनाएं पूरी जिम्मेदारी से आम जनता तक पहुंचाना पत्रकार का दायित्व है. ऐसे वक्त वह कमजोर नहीं पड़ता भावनाओं को नियंत्रित करता है, अन्यथा रोना तो पत्रकारों को भी आता है. आंसू उसकी आंखों में भी सूखे नहीं.
खबरों से पत्रकार थकता नहीं, लेकिन विगत कुछ दिनों से लगातार आ रहीं बलात्कार , यौन शोषण की खबरें मुझे थका रही हैं. हर दिन देश-राज्य से ऐसी इतनी खबरें आती हैं कि क्या लिखूं?कैसे लिखूं? कभी चार साल की बच्ची पीड़िता तो कभी नाबालिग. कभी 35-40 की महिला तो कभी 50 की. इतनी तकलीफ होती है खबर लिखते, क्या महिलाओं को कभी अपने शरीर पर भी अपना हक मिलेगा? या वह यूं ही रौंदी कुचली जाती रहेगी? महिलाओं के खिलाफ हिंसा थमने का नाम ही नहीं ले रही है, यह सिलसिला कब थमेगा यह बड़ा सवाल है, कभी-कभी तो इतनी खीज होती है कि अंतरात्मा चीख कर कहती है- अरे शोहदों मैं खबर लिख-लिखकर थक गयी और तुम कैसे इंसान हो कि  कुकर्म करते नहीं थकते? फिर सोचती हूं थकना नहीं है थक गयी , तो यह अपने डैने और फैलायेंगे मुझे तो पत्रकारिता के हथियारों से इनके डैने तोड़ने हैं ताकि कोई महिला किसी गिद्ध का शिकार ना बनें और कोई उसे नोंच खाने की हिमाकत ना करे. इस नवरात्रि यही संकल्प.

रजनीश आनंद
23-09-17

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