मंगलवार, 5 सितंबर 2017

आंसुओं का कटोरा

जब उस रात
नाराज हो तुम
चले गये थे झटक
दामन मेरा
मैं तकिये में मुंह
छिपा रोई नहीं
आंसुओं को कटोरे में
समेट उछाल दिया
आसमान की ओर
देखा मैंने
आंसुओं की हर बूंद
चिपक गयी सितारों से
और हर सितारे की चमक से
झड़ रहीं थीं तुम्हारी मीठी बातें
मैं भागकर गयी बाहर
और जमा किया
उन बातों को एक बाल्टी में
पूनम की रात थी
तुम नहीं पर चांद
मुस्कुराया मुझे देख
मैंने उसके सामने ही
बातों की बाल्टी से
एक-एक मग प्यार के
निकाल खुद को नहला
दिया उस मीठे जल से
चमक उठा मेरा बदन
क्योंकि लिपटा था
वह तुम्हारी मीठी बातों
के आलिंगन में सिर से पैर तक...

रजनीश आनंद
05-09-17



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