सोमवार, 11 अप्रैल 2016

जानते हो प्रिये...


तसवीर गूगल से साभार
जानते हो प्रिये, आजकल
अकेलापन नहीं सालता मुझे
सुबह से शाम तक उलझी रहती हूं
तुम्हारी यादों की लताओं में
कभी खुद से बोलती हूं
तो कभी हंस पड़ती हूं
कभी महसूस होता है
जैसे कस लिया है तुमने
बांहों के मजबूत घेरे में
तो कभी तुम्हारी नजरें
भेद जाती हैं तन-मन
जानती हूं, मैं कि तुम
नहीं हो पास मेरे,फिर भी
 ना जानें क्यों तुम्हारे होने का
एहसास हर पल है साथ मेरे
तुम्हारे होने की अनुभूति ही
जब दे जाती है, इतना सुख
तो कैसा होगा मिलन का मंजर
जानते हो प्रिये,
अब दुख नहीं है, गर ना हो
हमारा मिलन, क्योंकि मैं
बन चुकी हूं तुम्हारी मीरा
जिसे जीवनपर्यंत रहेगा
अपने कान्हा का इंतजार
जानते हो प्रिये....

रजनीश आनंद
11-04-16

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