सोमवार, 18 अप्रैल 2016

ए सुनो ना प्रिये, जानते हो जब तुम्हारी आंखों में ...

तसवीर गूगल से साभार
ए सुनो ना प्रिये, जानते हो जब तुम्हारी आंखों में देखती हूं ना मैं
तो लजा कर कई बार ढंक लेती हूं अपना चेहरा हथेलियों के बीच
लगता है जैसे बस अभी तुम बाहों में भरकर चूम लोगे मुझे
और मैं घबरा कर भाग जाती हूं, लेकिन जब तुमसे दूर जाती हूं ना
तो तुम्हारा प्रेम बन कान्हा की बंसी मुझे अपनी ओर खिंचता है
कहता है क्यों चली आयी थी मैं तुम्हारी बांहों से निकल कर
क्यों नहीं मैंने जी लिया उन पलों को, जब तुम थे मेरे साथ
लाज तो बस विघ्न बन गया है मेरे और तुम्हारे मिलन के बीच
सोचती हूं क्यों मैंने चाहा था, स्याह अंधेरों के बीच तुमसे मिलना
क्यों तुम्हारी आंखों से घबरा गयी मैं, जबकि वही तो मुझे दिलाता है
तुम्हारे और मेरे प्रेम की पूर्णता का अहसास
काश कि मैं तुम्हारी आंखों में खो जाती और
जी लेती उन पलों को, जब तुम मुझे कराते मेरी संपूर्णता का अहसास
और थक कर सो जाती मैं तुम्हारी मजबूत बांहों के बीच बेसुध
और जब तुम मुझे जगाते और करते मुझसे प्रेम निवेदन
तो तुम्हारी आंखें मुझे बहुत भाती
सच कहती हूं तब मुझे मेरी दुनिया मिल जाती
ए सुनो ना प्रिये, जानते हो जब तुम्हारी ...
रजनीश आनंद
18-04-16

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