शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

तुम इतने अच्छे क्यों हो प्रिये?

तुम इतने अच्छे क्यों हो प्रिये?
यह सवाल मेरे मन में हमेशा उठता है
ज्यों-ज्यों मैं तुम्हारी ओर खिंचती जाती हूं
और मनोहर होता जाता है तुम्हारा स्वरूप
जो तुम कहते हो, सच लगता है मुझे
जिसे देखो वो अनुपम
जिसे छू दो वह अमृततुल्य
तसवीर गूगल से साभार
लोग कहते हैं प्रेम इंसान की समझ को छोटा कर देता है
इसलिए मुझे नहीं दिखते तुम्हारे अवगुण
कोई यह भी कहता है, निर्मोही हो तुम
छोड़ जाओगे एक दिन रोता मुझे
लेकिन मैं इन सब से कहना चाहती हूं
तुम्हें दिखती होंगी लाख बुराइयां मेरे प्रिये में
लेकिन मुझे तो एक भी नहीं दिखतीं
आओ मेरी नजरों से देखो उसे
वह तुम्हें भी सोने जैसा खरा दिखेगा
मेरे मन में उसकी जो छवि है, वह मेरा भ्रम नहीं
मेरा विश्वास है, मैं जानती हूं मेरा प्रिये है अनमोल
उसके प्रेम में इतना रस है
जो उसे बनाता है मेरे लिए खास, सबसे खास...
जैसे मीरा को नहीं देखी अपने गिरिधर में कोई खामी
वैसे मुझे भी नहीं दिखता अपने सांवरे में कोई अवगुण
मेरे लिए तो वो है सर्वोत्तम, चाहे किसी के लिए हो ना हो.
रजनीश आनंद
29-04-16

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