गुरुवार, 15 जून 2017

तो जन्म लेती है दूसरी आस...

आज मैंने देखा अपनी जड़ों से
उखड़ कर बिखरे बूढ़े बरगद को
आह निकल आयी, आते-जाते
राह में रोज होती थी उससे मुलाकात
मैंने देखा था उसे शान से लहलहाते हुए
उसके हरे पत्तों पर, जीवन ठहराता था
लंबी जटाओं में बचपन उमड़ता था
जिन कदमों की शक्ति हो रही थी क्षीण
वे भी सानिध्य में इसके पाते थे अपनापन
दो पल को जी लेते थे, ठिठक कर
तुम भी तो एक दुपहरी इसकी छांव में
मेरी गोद में सिर रखकर लेटे थे सुकून से
कुछ पल के लिए ही सही पनपा था प्यार हमारा
हमारे जिस प्रेम पर लोग उठाते हैं सवाल
उसपर भी स्नेह बरसाया था इसने
बस, उसी दिन से यह बरगद
पिता तुल्य हो गया था मेरे लिए
आज जब देखा, इसकी एक शाखा पर चलते कुल्हाड़ी
चीख उठी थी मैं, मत करो यह अनर्थ
भाग कर लिपट गयी थी उसके टूटे तने से
चीत्कार उठा था मन
अश्रु जो बरसे तो धुली आंखों से देखा
मैंने एक सुंदर दृश्य, नन्हा बरगद
हां, बूढ़े बरगद की जड़ों से फूटा था नन्हा पौधा
उसमें थी अद्‌भुत जीवंतता, जैसे कह रही हो
जीवन थमता नहीं, एक उम्मीद टूटती है
तो जन्म लेती है दूसरी आस...

रजनीश आनंद
15-06-17

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