गुरुवार, 29 जून 2017

मैं कविताएं लिखती हूं...

मैं कविताएं लिखती हूं
अक्षर-अक्षर तुम में भींगी
बिनती हूं तिनका-तिनका
जो मिल जाये तुम्हारे प्रेम का
बया की तरह बुन लूंगी मैं
घोंसला हमारे प्रेम का
जो रौशन होगा तुम्हारे ठहाकों से
जहां बसती होगी खुशबू
हमारे अनोखे प्रेम की
जहां नहीं रिसेगा दर्द कोई
बस तड़प होगी तो मिलन की
आस में उस पल के
जब भी मैं आहें भरती हूं
प्रतीत होता है जैसे
मेरे प्रेम की छींटे
तुम्हें सराबोर करती हैं
विनती बस है इतनी सी
तौलिए से पोंछ हटाना नहीं
तुम इन प्यार के छींटों को...
रजनीश आनंद
29-06-17

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