रविवार, 18 जून 2017

जिंंदगी की थाली...

जिंदगी की थाली में
व्यंजन तो कई थे
लेकिन रसोइये ने
नमक ना डालने की
भूल कर दी थी
सब फीका-फीका सा था
हर कौर को उठाकर
जब मुख तक लाती मैं
बेस्वाद है ऐसा बोल पड़ती थी
जिह्वा मेरी, लेकिन
भोजन को सुस्वादु बनाने में
ना जाने क्यों रुचि नहींं थी मेरी
सफर-ए-जिंदगी के बीच में
आया एक राहगीर
मेरे व्यंजनों पर उसने दौड़ाई नजर
हौले से मुस्काया
फिर ना जाने उसे क्या सूझी
एक तेज फूंक मारी उसने
मेरी बेस्वाद थाली पर
और
अगले ही स्टेशन पर गया उतर
उसके जाने पर ज्योंही
मैंने थाली से उठाया
एक कौर और रखा जिह्वा पर
भोजन के स्वाद से
मुख के साथ-साथ
पूरा तन-बदन रोमांचित हुआ
फूंक का रहस्य जो समझी मैं
भागी उस राहगीर के पीछे
लेकिन वो जा चुका था
मेरी थाली के व्यंजनों में
नमक छिड़ककर
मुझे मिली मात्र उसके
फूंक की सुंगध
जिससे सराबोर मैं
आजीवन लिख लिया
हृदय पर नाम
उस राहगीर का...
रजनीश आनंद
18-07-17

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