सोमवार, 26 जून 2017

मैं पत्र तुम्हारे नाम लिखूं...

जी चाहता है एक
पत्र लिखूं मैं तुम्हारे नाम
अपनी नीली कलम से
जो बहुत प्रिय है मुझे
पता नहीं क्या बात है
इस कलम में जब भी
थामती हूं मैं इसे
यह समझ लेती है मेरी मनोस्थिति
और उकेरती है मेरे मन की बात कागज पर
जैसे कि तुम पढ़ लेते हो
बिना कहे मेरे मन की बात
फिर सोचती हूं
फेसबुक,व्हाट्‌सएप के युग में
क्या तुम पढ़ोगे मेरा पत्र
लेकिन यह पत्र आभासी नहीं
सजीव है, जिसे मैं लिख रही हूं
तुम्हारे नाम अपनी कलम से
मैंने चूमा है अपनी कलम को
और सीने से लगाया है उस कोरे कागज को
जिसपर लिखूंगी मैं अपने मन की बात
कागज पर ज्योंही मैंने लिखा तुम्हारा नाम
भावनाएं कुछ यूं उमड़ीं कि
जहां लिखा था तुम्हारा नाम
वहीं बरस पड़े अश्रु
यह आंसू नहीं मेरा प्रेम है तुम्हारे लिए
इसलिए इनसे मुंह ना मोड़ना
सीने से लगाकर देखना पत्र को
मेरी धड़कनें सुनाई देंगी तुम्हें
और महसूस कर सकोगे मेरे प्रेम की खुशबू
यह प्रेम का दिखावा नहीं, ना तो अति है
क्योंकि मेरा प्रेम दिखावे का मोहताज नहीं
हां, अति तो शायद कभी ना होगी प्रेम की
क्योंकि हर पल मुझे लगता है
जैसे तुमसे मन भर प्यार ना कर पायी मैं
जब मिले यह पत्र तुम्हें
बस इतना करना तुम
पढ़ना इसे मेरा सच समझ कर
और कहना बस एक बात
मुझे तुमसे प्रेम है...

रजनीश आनंद
26-06-17

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