बुधवार, 21 जून 2017

मैंने दुनिया खरीदी...

मैंने आज दुनिया खरीदी,
वह भी गुल्लक से सौ रुपये निकालकर
इन रुपयों को संजोया था मैंने
हर सिक्के को गुल्लक में डाल
मैं बन जाती थी एक औरत
और सजाती थी कई सपने
कई ख्वाहिशें भी जनमींं
पर उनका बेदर्दी से हुआ कत्ल
लेकिन आज वो औरत कब्र से जागी है
और एक बार जीना चाहती है
अपने सपनों के साथ
क्योंकि उसने पाया है
प्रेम और अधिकार तुम्हारा
इस सौ रुपये से लिपटे हैं
मेरे अनगिनत सपने
लाल, गुलाबी, नीले, पीले
मैं इन सपनों को साकार करूंगी
तुम्हारी आंखों में डूबकर
क्योंकि मैं तुम्हारी हूं...
रजनीश आनंद
21-06-17

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