शनिवार, 10 जून 2017

इस डर से नहींं सजाती हिना...

चांद पूनम का हो,दूज का हो
या फिर बदली मेंं छिपा क्यों ना हो
कमतर नहीं होती उसकी खूबसूरती
जैसे तुम पास हो, बांहों में हो या फिर
सैकड़ों मील दूर, कसक कम नहींं होती
तुम्हारे प्यार की, एहसास की.

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सोचती हूं कैसे खुशनसीब हैं वो
जो प्यार की अति से ऊब जाते हैं
हम तो उनकी एक नजर के लिए भी
हरपल तरसते रहते हैं.
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वर्षों हुए हाथोंं में मेहंदी सजाये
उसका सुर्ख रंग भाता नहीं मुझे
यह भी सच नहींं, पर इस डर से
नहींं सजाती हिना कि जो तुम पास ना होगे
तो कौन संवारेगा मेरी बिखरी जुल्फों को.

रजनीश आनंद
10-06-17

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