ये रात कुछ ऐसी बिखरी है
जैसे टूटकर बिखरा हो
तुम्हारा प्यार मुझपर
मैं समेट कर इन्हें
सजाना चाहती हूं तनबदन
ताकि जिस रात तुम
ना हो साथ मेरे
मैं इन सजावट को जी लूं
महसूस लूं तुम्हारी
खुशबू को जो बिखरी है आसपास
थाम कर तुम्हारे दोनों हाथ
मैं देखना चाहती हूं
हाथ की रेखाओं में
अपना नाम, लेकिन!!!
ना पाकर अपना नाम
जब झलकते हैं नयन मेरे
तो दोनों हाथोंं से सहेज कर मुझे
तुम अपने हृदय पर लिखा मेरा नाम दिखाते हो...
जैसे टूटकर बिखरा हो
तुम्हारा प्यार मुझपर
मैं समेट कर इन्हें
सजाना चाहती हूं तनबदन
ताकि जिस रात तुम
ना हो साथ मेरे
मैं इन सजावट को जी लूं
महसूस लूं तुम्हारी
खुशबू को जो बिखरी है आसपास
थाम कर तुम्हारे दोनों हाथ
मैं देखना चाहती हूं
हाथ की रेखाओं में
अपना नाम, लेकिन!!!
ना पाकर अपना नाम
जब झलकते हैं नयन मेरे
तो दोनों हाथोंं से सहेज कर मुझे
तुम अपने हृदय पर लिखा मेरा नाम दिखाते हो...
रजनीश आनंद
31-05-17
31-05-17
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