बुधवार, 31 मई 2017

हृदय पर अंकित मैं

ये रात कुछ ऐसी बिखरी है
जैसे टूटकर बिखरा हो
तुम्हारा प्यार मुझपर
मैं समेट कर इन्हें
सजाना चाहती हूं तनबदन
ताकि जिस रात तुम
ना हो साथ मेरे
मैं इन सजावट को जी लूं
महसूस लूं तुम्हारी
खुशबू को जो बिखरी है आसपास
थाम कर तुम्हारे दोनों हाथ
मैं देखना चाहती हूं
हाथ की रेखाओं में
अपना नाम, लेकिन!!!
ना पाकर अपना नाम
जब झलकते हैं नयन मेरे
तो दोनों हाथोंं से सहेज कर मुझे
तुम अपने हृदय पर लिखा मेरा नाम दिखाते हो...
रजनीश आनंद
31-05-17

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें