सोमवार, 10 जुलाई 2017

थपकी

एक सपना संजोया
ना जानें क्यों कर
चांद रात में बन चांदनी
बिखरी थी मैं और तुम
सूरज बन चिपके थे
मेरे कलेजे से इस कदर
कि पिघल रही थी चांदनी
इस चांद-सूरज के मिलन में
लेकिन प्रेम के पालने में
सुलाया था तुमको
और दे रही थी थपकी....
................
सपने में आये तुम
प्रेम का पौधा लिये
रोपा मैंने उसे कोख में
पलकों से सींचा
पल में  लहलहाया वृक्ष
हम-तुम थे एक ही डोर में गुथे
रजनीश आनंद
10-07-17

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