जानते हो तुम
हर चांदनी रात में
मैंने धरती को
सिमटते देखा
ज्यों ज्यों पसरा चांद
उसके बदन पर
चांद का स्पर्श
तो नहींं था
नसीब में उसके
फिर भी वो
तन-मन से
उसकी हो ली थी...
हर चांदनी रात में
मैंने धरती को
सिमटते देखा
ज्यों ज्यों पसरा चांद
उसके बदन पर
चांद का स्पर्श
तो नहींं था
नसीब में उसके
फिर भी वो
तन-मन से
उसकी हो ली थी...
रजनीश आनंद
14-07-17
14-07-17
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