मंगलवार, 25 जुलाई 2017

ओ मेघ सुनो...

ओ मेघ तुम बरस तो रहे हो लगातार,
सारे ताल-तलैया भर गये
तुम में सराबोर पहाड़ी नदियां
इतरा कर उफन रहीं हैं
मैं भी तो भींगी, खूब भींगी
लेकिन मन प्यासा है
ओ मेघ सुनो, सावन में
तुम्हारे बरसने से नहीं
मेरी प्यास तो बुझती है
प्रिये के स्पर्श से
उसकी एक नजर से
क्या उससे जाकर
यह कह पाओगे तुम...
रजनीश आनंद
25-07-17

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