गुरुवार, 27 जुलाई 2017

मैं दोषी हूं, क्योंंकि औरत हूं...

स्तन, योनि, मांसल देह
इससे इतर कुछ भी नहीं
एक औरत, इस जग में
उसे नोंच खाने की तत्परता
हर गली, हर शख्स में
फर्क नहीं, उभार हैं
या सिर्फ होने का एहसास भर
सहमति, असहमति का प्रश्न
तो बेमानी , बेतुका है
यहां तो गिद्ध की नजरें हैं
और औरत खरहे की जान
सिसकती, छुपाती खुद को
क्या बच्ची, जवान और वृद्धा
फिर भी दोषी मैं ही हूं
क्योंकि मैं औरत हूं
और तुम पुरूष, तन विजेता ...
रजनीश आनंद
27-07-17

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