शनिवार, 19 अगस्त 2017

रिश्ते

जीवन की पगडंडी पर
चलते मिले कई रिश्ते
कुछ खून के थे और
कुछ बोये थे मैंने
रोज निहारा धरती में धंसे बीज को
खाद पानी दिया, पुचकारा स्नेहपूर्वक
कोंपल फूटे तो मन किसान सा हुआ
लगा अब लहलहायेगा जीवन
लेकिन
यह तो सुंदर स्वप्न था
मैं निराश हुई, क्या बंजर है मेरी धरती ?
तभी स्पर्श किसी का चौंका गया
देखा तो खुशी से बरसे नैना
कुछ नन्हें पौधे मुस्कुरा रहे थे...
रजनीश आनंद
20-08-17

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