रविवार, 20 अगस्त 2017

तरल हुआ तन-मन

जानते हो प्रिये
जब तुम्हारी आंखों में
झांकते हैं मेरे नयन
तो बेकल हृदय
आंखों में टंगें
प्रेम को देख
त्याज देना चाहता है
तन के सारे वस्त्र
और पहन लेना चाहता है
प्रेमवस्त्र तुम्हारा
जो बिलकुल मेरे नाप का
मालूम होता है,
मेरे कानों में रह-रह गूंजती है
तुम्हारी पुकार और
तन-बदन तरल हो
सिमट जाना चाहता है
तुममें बिलकुल तुम्हारी
जान की तरह...
रजनीश आनंद
20-08-17

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