चाह तो बहुत थी, लेकिन
जिंदगी ने नहीं कराई
भेंट किसी इमरोज से
तो सहसा मन इमरोज
सा हुआ जाता है
जिंदगी ने नहीं कराई
भेंट किसी इमरोज से
तो सहसा मन इमरोज
सा हुआ जाता है
जानती हूंं सहज नहीं
इमरोज हो जाना
लेकिन अब मन बस में कहां
वो तो अमृता का हुआ
इसलिए मन इमरोज हुआ जाता है
इमरोज हो जाना
लेकिन अब मन बस में कहां
वो तो अमृता का हुआ
इसलिए मन इमरोज हुआ जाता है
तुम्हें मुझसे प्रेम ना सही
मुझे तो तुमसे है बेपनाह
तभी तो जब तुम करते हो
चर्चा मेरे सामने साहिर की
तो मन इमरोज हुआ जाता है
मुझे तो तुमसे है बेपनाह
तभी तो जब तुम करते हो
चर्चा मेरे सामने साहिर की
तो मन इमरोज हुआ जाता है
तुम रचते नहीं मेरे लिए प्रेमकविता
तो क्या फर्क मुझे इससे
तुम्हारी हर प्रेमकविता की
पहली पाठक मैं ही तो हूं
तभी तो मन इमरोज हुआ जाता है
तो क्या फर्क मुझे इससे
तुम्हारी हर प्रेमकविता की
पहली पाठक मैं ही तो हूं
तभी तो मन इमरोज हुआ जाता है
जब सफलता गले लगाती तुम्हें
और चूम लेती है , पेशानी तुम्हारी
तो बेपरवाही से तुम हाथ खींचकर
मेरा कराते हो एहसास मुझे उस गरमाहट का
तब ना चाहते हुए भी मन इमरोज हुआ जाता है
और चूम लेती है , पेशानी तुम्हारी
तो बेपरवाही से तुम हाथ खींचकर
मेरा कराते हो एहसास मुझे उस गरमाहट का
तब ना चाहते हुए भी मन इमरोज हुआ जाता है
आज हमारा साथ दो
इंसानों के देह का होगा
पर जब मैं जाऊंगी इस लोक से
मेरी कोख में पनप चुका होगा
हमारा रूहानी रिश्ता
इसलिए मन इमरोज हुआ जाता है...
इंसानों के देह का होगा
पर जब मैं जाऊंगी इस लोक से
मेरी कोख में पनप चुका होगा
हमारा रूहानी रिश्ता
इसलिए मन इमरोज हुआ जाता है...
रजनीश आनंद
31-08-17
31-08-17
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