शुक्रवार, 13 मई 2016

...क्योंकि इंतजार से कम नहीं होता प्रेम

अमावस की रात में अचानक क्यों
मैं छत पर जाकर बैठक गयी थी तुम जानते हो प्रिये?
क्योंकि मुझे इंतजार था, शायद दिख जाये मुझे दूज का चांद
पूर्ण चंद्र से अनोखी होती है, दूज के चांद की छटा
मुझे उम्मीद थी चांद में दिख जायेगा तुम्हारा अक्स
तब गूंथ लेना मुझे अपनी बांहों में और
मैं सीने से लगकर आज बहुत रोऊंगी
ऐसे कैसे कह दिया तुमने
कोई मोल नहीं है मेरे प्रेम का
लेकिन देखो ना प्रिये
अमावस की रात तो और भी काली होती जा रही है
नहीं दिखता इसमें मुझे दूज का चांद
लेकिन तुम घबराना नहीं
क्योंकि हर अमावस के बाद आती है पूर्णिमा
उस दिन मेरा चांद मुस्कायेगा और मैं रहूंगी उसकी बांहों में
तब तक इंतजार ही है मेरा धर्म
क्योंकि इंतजार से कम नहीं होता प्रेम...
रजनीश आनंद
13-05-16

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