सोमवार, 30 मई 2016

...किसी और के लिए जगह कहां है?

आज रात जब मैं तुम्हारे इंतजार में व्याकुल थी ना प्रिये
तो मुझ पर तंज कसते हुए चांद ने कहा, क्या आज भी नहीं आया वो?
मैंने कहा, आने की जरूरत क्या है वो तो मेरे तन-मन में बसा है
चांद हंसा, सुन री तू दीवानी है उसके प्रेम में, पर वह है बेपरवाह
मैंने कहा, हां मैं दीवानी हूं अपने सांवरे की, लेकिन नहीं है
 उसका प्रेम बेपरवाह, वो तो हर जगह है मौजूद
इस बार चांद खिलखिलाया, अच्छा तो बता कहां है तेरा प्रिये
मुझे तो नहीं दिखता, मेरी चमकीली चांदनी में तो सब कुछ आता है साफ नजर
इस बार उसकी हंसी जरा भी नहीं भायी मुझे, मैं भी गर्व से बोली
मेरी ओर देखो, ये जो मेरी मांग में सिंदूर है, यह है उसकी उपस्थिति का सबसे बड़ा सबूत
मेरी आंखों में देखो उसका बिंब नजर आयेगा तुम्हें
मेरे अधरों पर हैं उसके निशान और तन-मन में उसकी खुशबू
वो वर्षों ना भी आये, तो मेरे अंदर रहेगा मौजूद
क्योंकि वो मेरा श्याम और मैं उसकी मीरा, बुतपरस्ती है मंजूर मुझे
मेरी बात पर चांद ने तरेरी भौंहे कहा, भगवान ना बना उसे
मैंने कहा, हां वो इंसान ही है, तभी तो मेरे प्रेम में खिंचा चला आयेगा वो
जब हम होंगे एकाकार, क्योंकि मेरे जीवन तो सिर्फ वही है
किसी और के लिए उसने जगह कहां छोड़ी है.
रजनीश आनंद
30-05-16

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