गुरुवार, 5 मई 2016

मैं उनकी चांदनी...

रात चांदनी ने कहा मुझसे, तू क्यों है बेचैन
क्यों तू हर पल उसी के ख्यालों में डूबी रहती है
क्यों मुझे तेरी सांसों से उसकी खुशबू मिलती है
क्यों मैं जब तुझे देखती हूं, तो तेरी आंखों में उसका
मोहक चेहरा नजर आता है, क्यों तू  खुद को उससे इतर नहीं कर पाती
मैंने कहा, नाराज क्यों होती हैं
तू भी तो चांद की ही छाया है, उसके ही चमक से इतराती है
क्या बिना चांद के है तेरा अस्तित्व
मेरी बात सुन चांदनी थोड़ा मुरझाई
मैंने उसकी ओर हंस कर देखा
कहा, निराश क्यों होती है
जैसे वो हमारे प्रिये है, वैसे चांद तुम्हारा
मैं तो अपने चांद की चांदनी बन बहुत खुश हूं
उसका प्रेम मेरे लिए अमृततुल्य
जिसका रसपान कर अमर हुआ हमारा प्रेम,शरीर भले ही नश्वर हो,
मैंने चांदनी के कानों में फुसफुसाकर कहा,
जानती हूं उसने इस संसार से साथ लेकर जाने का भी किया है वादा
मेरी बात सुन चांदनी मदमस्त हो गयी
समा गयी अपने प्रियतम के आगोश में
देखा मैंने, अब नहीं था दोनों का अलग अस्तित्व
 बस था एकाकार प्रेम...
रजनीश आनंद
05-05-16

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