गुरुवार, 26 मई 2016

मैं नहीं जानती कि तुम मेरे क्या हो?


मैं नहीं जानती कि तुम मेरे क्या हो?
लेकिन जब सांस आती है, तो हर सांस में होता है तुम्हारा नाम
जैसे धड़कन हो तुम .
पूरी दुनिया की भीड़ में खुद को तुम्हारे साथ पाती हूं हर्षित
जैसे सबसे प्रिय मित्र हो तुम
जो मुस्कान कभी छिन गयी थी होंठों से, उसे वापस लाये हो तुम
जैसे मुस्कान हो तुम
जब पीड़ा होती है बहुत तो, कांधे पर तुम्हारे सिर रख कर रो लेती हूं, जैसे वरदान हो तुम
जीवन के संघर्षपथ पर, अग्रसर हूं तुम्हारे उस वादे के सहारे कि कभी ना छूटेगा यह हाथ
जैसे आत्मविश्वास हो तुम
जब मूंद लेती हूं आंखें अपनी और अपने सीने पर रखती हूं तुम्हारा हाथ तो
अंतस  से आती है एक आवाज, जिंदगी हो तुम, जिंदगी हो तुम...
रजनीश आनंद
26-05-16


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