रविवार, 28 मई 2017

आकाश सा विस्तृत प्रेम...

तुम जैसे हो वैसे ही स्वीकार्य मुझे
मैं नहीं चाहती तुम्हें बदलना
बस थाम कर हाथ मेरा
जीवनपथ पर चलना तुम
आंखें मूंदकर, झांकों मेरे मन मेंं
आकाश सा विस्तृत प्रेम है तुम्हारे लिए
मैं नहीं चाहती
प्रेम का आडंबर तुमसे
बस, कठोर धरातल पर भी
चाहती हूं तुम्हारी बांहों का मजबूत घेरा
और कहना तुमसे , हां मुझे प्रेम है
और हमेशा रहेगा...

रजनीश आनंद
28-05-17

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