सोमवार, 15 मई 2017

तब कोपल खिलते हैं...

मुझे ज्ञात है
पास नहीं हो तुम
फिर भी मैं चाहती हूं
जकड़ना तुम्हें यादों में
क्योंंकि यादें दामन नहीं छुड़ाती
उन यादों में हौले से
तुम्हें चूमकर, आंखें बंद कर
पुकारना चाहती हूं
लेकर तुम्हारा नाम
जानते हो प्रिये यादों में
तुम झट से चले आते हो
फिर हमारे बीच
नहींं होती है कोई दीवार
हम संजोते हैं सपने कई
तुम कहते हो मैं सुनती हूं
टकटकी लगाये देखती हूं
तुम्हारी आंंखों में, जिसमें
नजर आती हूं मैं
गौरवान्वित तुम्हारे साथ से
उस वक्त पेड़ों से पत्ते नहींं झड़ते
कोपल खिलते हैं
चांद कटता नहीं
पूर्ण होकर मुस्कुराता है
और मैं तुम्हारी बांहों में
कसी सृजन करती हूं
अपने लिए खुशियों की
जो सिर्फ और सिर्फ तुमसे है...
रजनीश आनंद
15-05-17

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