शनिवार, 13 मई 2017

मेरी पहुंच तुम तक...

तुम्हें छूने की चाह में
हर पूनम की रात को
जब चांद तुम्हारी तरह मुस्कुराता है
मैं बढ़ाती हूं अपना हाथ
लेकिन रेत के टीले में
जैसे धंसता जाता है हाथ
और ठौर नहीं मिलता
वैसे ही विस्तृत आकाश में
चांद तक नहीं पहुंचती बांहें मेरी
और पूनम की रात अमावस में बदलती है
पर अमावस की काली रात भी
उस दीये की रौशनी को
ढांक नहीं पायेगी जिससे
रौशन है हृदय मेरा , रक्त बनकर
बहता है मेरे नस-नस में प्रेम तेरा
उम्मीद है प्रेम मेरा संपूर्ण होगा
तब हाथ बढ़ाकर छू लूंगी तुम्हें...
रजनीश आनंद
13-05-17

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