गुरुवार, 18 मई 2017

तुम मेरे जीवन की प्रेम कविता...

तुम मेरे जीवन की प्रेम कविता हो
बहते हो नस-नस में जीवन सरिता बनकर
मेरे दृगों में सजती है छवि तुम्हारी
वाणी से फूटते हैं तुम्हारे बोल
विचारों में बुनती हूं तुम्हारे साथ के सपने
चोट लगे तो आह की जगह निकलता है नाम तुम्हारा
खुशी की खबर तो खैर तुम्हारे नाम के
लिफाफे में ही कैद होकर आती है पास मेरे
सोचती हूं आखिर क्यों है इतना प्रेम तुमसे
तो मन कहता है , बाती ने कभी बताया
उसे क्यों है दीपक से इतना प्रेम
चांदनी और चांद के प्रेम का क्या है रहस्य?
तुम तो बस प्रेम करो और जीयो इस जीवन को
जो रौशन है उसकी एक बात से कि वो तुम्हारा है...
रजनीश आनंद
18-05-17

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