गुरुवार, 2 जून 2016

इतनी बेसब्री क्यों है?

तुमसे मिलने की इतनी बेसब्री क्यों है?
तन-मन में मेरे यह बेकशी सी क्यों है
हर आहट चौंका जाती क्यों है
हर बुलाहट अपनी सी लगती क्यों है
यूं तो श्रृंगार नहीं है प्रिये मुझे
लेकिन रह-रह आईना देखती क्यों हूं
तू सपना है या सच नहीं जानती मैं
फिर भी अपना सा लगता क्यों है
नहीं है तेरे स्पर्श से पहचान मेरी
फिर भी क्यों तेरे स्पर्श से तन-मन भीगा सा है
आह,
जबकि नहीं हो तुम सामने मेरे
फिर क्यों आसपास तेरे बदन की खुशबू सी है
जानती हूं मैं तू नहीं हो सकता मेरा
फिर भी कुछ पल अपने नाम करने की जिद सी क्यों है?

रजनीश आनंद
2-06-16

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