गुरुवार, 11 अगस्त 2016

औरत की ‘ ना’ का मतलब ‘ना’ ही होता है

हमारे समाज में एक औरत के बारे में कई तरह के गॉसिप प्रचलित हैं, जिसे सच मान लिया गया है, लेकिन इस तरह के गॉसिप पर मुझे आपत्ति है जिसे मैं दर्ज कराना चाहती हूं. मसलन ‘लड़की हंसी समझो फंसी’, ‘औरत की ना का मतलब भी हां होता है, इत्यादि. इस तरह की बातें हंसी-मजाक में की जाये, तो बात दीगर है. लेकिन इसे गंभीरता से लेने वालों को मैं यह कहना चाहती हूं कि लड़की हंसी समझो फंसी, सुनने में यह बात भले ही हल्की और मजाकिया टाइप की हो, लेकिन इसे जेनरलाइज ना किया जाये. लड़कियां किसी से भी मुस्कुराते हुए मिलती है, यह feminine  गुण है. जिसे गलत तरह से परिभाषित किया जाता है.

वह स्वभाव से कोमल होती है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उसपर डोरे डालने वालों को छूट मिल गयी. रही बात किसी खास के लिए मुस्कुराने की बात, तो उस वक्त उसकी मुस्कान अलहदा होगी, जिसका अंदाजा किसी को भी हो सकता है. उस मुस्कान का सामान्यीकरण संभव नहीं.

मेरा ऐसा मानना है कि भले ही अधिकतर पुरुष हर महिला को देख लेते हों, लेकिन वे भी इस बात से सहमत होंगे कि हर लड़की उनके दिल के दरवाजे पर दस्तक नहीं देती और ना ही उनका दिल हर किसी को देख धड़कता होगा.

उसी तरह इस बात पर भी मेरी आपत्ति है कि औरत की ना का मतलब हां होता है. औरत जब ना कहती है तो वह ना ही कहती है, जबरन उसे हां बनाने की कोशिश बहुत गलत है. सड़क पर आते-जाते महिलाओं के साथ बदसलूकी करने वालों को जब महिला टोकती है, तो किस हक से वे उसकी ना को हां समझते हैं? उन्हें अपने दिमाग का इलाज कराना चाहिए. यह बात यहीं खत्म नहीं होती, घर में भी ऐसी बातें होती हैं, जब महिला की ना को हां में बदला जाता है.

 इसलिए मेरा यह मानना है कि औरत जब ना बोले तो उसे ना ही समझें आखिर सवाल उसकी इच्छा और अस्तित्व का है. इस तरह की लोकोक्ति बनाने के शौकीनों के लिए बस एक ही सलाह है कि इसे हंसने-हंसाने तक सीमित रखें, किसी महिला को परिभाषित करने के लिए नहीं.
रजनीश आनंद
11-08-16

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