शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

सावन की बूंदें...

आज सावन की बूंदें
जब तन पर पड़ीं
तो हर बूंद ने मुझे भिंगोते हुए
दिये मिलन के संकेत
यूं तो मेरे कदम
नहीं जा रहे थे तुम तक
फिर भी भींगता तनमन
खोया था तुममें
शिवालय की घंटियां भी
दे रहीं थीं शुभ संकेत
देखो ना, इस स्याह रात में
रौशन गर है, तो सिर्फ तुम्हारा प्रेम
मैं जानती हूं तुम नहीं हो आसपास
फिर क्यों महसूस होती है
तुम्हारे बाहुपाश की जकड़न
जिसकी गिरफ्त में मैं
कब से आना चाहती हूं
कांपते अधर और सूखते कंठ
तृप्त होंगे, जब मिलेगा स्पर्श तुम्हारा
निष्प्राण सी हो गयी हूं मैं
लेकिन हर आती-जाती सांस
तकती है राह तुम्हारी
चाह है तो बस यही कि
लग कर सीने से तुम्हारे
कर लूं अपना प्रेम पूर्ण
और अंकित कर दूं तुम्हारे
सीने पर अपने प्रेम निशान

रजनीश आनंद
12-08-16

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