शनिवार, 20 अगस्त 2016

...फिर क्यों?

जब अपने जैसी संतति की चाह में
स्त्री-पुरुष करते हैं रति क्रिया
तब कहां उन्हें पता होता है
संतति नर होगी या मादा
जब समाता है पुरुष का वीर्य
स्त्री की कोख में और जन्म लेता है भ्रूण
तो घर के आंगन में गूंजती है खुशियां
नौ माह तक एक औरत
सींचती है उस भ्रूण को
तड़पता है पुरूष भी अपने अंश के लिए
दिखती है उसकी बेचैनी
प्रसव वेदना झेलकर जब एक औरत
जन्म देती है अपने संतति को
और नौ माह का भ्रूण
शिशु बन कदम रखता है इस दुनिया में
तो क्यों उसके मादा होने पर
औरत को मिलती है उलाहना, प्रताड़ना
और कभी मौत की सजा
औरत तो धरती है,
जैसा और जो बीज बोओगे
पौधा वैसा ही पनपेगा
फिर सारा दोष उसके सिर क्यों?

रजनीश आनंद
20-08-16


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