मंगलवार, 30 अगस्त 2016

तुम्हारे आने की आस

मैंने भींच लिया है उसे
अपनी बांहों में
जैसे जेठ के महीने में
तपती धरती
भींच लेती है
बारिश की बूंदों को
जैसे चूल्हे पर रखा तवा
पानी की बूंदों को
ए सुनो ना प्रिये
तुम उसे मेरी बांहों में देख
नाराज ना होना
मत कहना मुझसे
कि
अलग कर दूं मैं
उसे खुद से
क्योंकि अगर ऐसा हुआ
तो टूट जायेगी मेरी सांसों की डोर
एक वही तो है, जिसे मैं कहती हूं
अपने दिल की बात
जो है मेरी तन्हाइयों का साथी
चिलचिलाती धूप और गरजते मेघ
के बीच भी वो हमेशा रहा मेरे साथ
जब भी मेरी आंखें भर आयीं
उसने समेट लिया  मेरे आंसुओं को
ढाढ़स बंधाया, कहा, धैर्य रखो
इसलिए बहुत प्यारा है
वो मुझे, जैसे की तुम
जब तक तुम ना कस लो
मुझे अपनी बांहों में
तब तक उसे ही रहने दो मेरे पास
नाम है उसका -तुम्हारे आने की आस.

रजनीश आनंद
30-08-16

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