सोमवार, 22 अगस्त 2016

जब-जब तुम निष्ठुर हुए...

ए सुनो ना प्रिये
जब-जब तुम निष्ठुर हुए
प्रेम बढ़ता गया है
तुमने जब भी कहा ना
उसे अभिसार में बदलने को
बावला हुआ मन
रजनी है साक्षी
मेरी उस तड़प की
जब तुम्हारे इंतजार में
कुछ तम उससे उधार ले
मैंने भींच लिया उसे मुट्ठी में
इस आस में कि तुम
 आकर खोल दो उस मुट्ठी को
और नया सवेरा हो
सूरज की किरण से नहीं
तुम्हारे अधरों के स्पर्श से
पलकें खुलें मेरी
जब साथ होगे तुम
तो सुबह की ठंडी हवा
मखमली होगी क्योंकि वो
छूकर आयेगी तुम्हें
बिन तुम तो रास नहीं आती
सावन की फुहारें भी
महसूस होती है दुनिया
नीरस-निष्प्राण...
रजनीश आनंद
22-08-16

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