बुधवार, 24 अगस्त 2016

महिलाओं के लिए विधवा-सौतन जैसे शब्द क्यों?

भारतीय महिलाओं के लिए प्रयुक्त होने वाले कुछ शब्द पर मुझे आपत्ति है. मसलन विधवा, सौतन. विधवा कहते ही बेचारगी का भाव उत्पन्न हो जाता है जबकि ऐसी महिलाएं ज्यादा सशक्त होती हैं. ऐसी कई महिलाओं को मैं व्यक्तिगत तौर पर जानती भी हूं. एक ऐसी महिला जिसका पति मर जाता है वो तो शायद ही दूसरी शादी करती है, वो तो आजीवन उसी व्यक्ति की पत्नी रहती है, तो फिर उसके लिए यह शब्द क्यों उसे उक्त व्यक्ति की पत्नी ही रहने दीजिए. इससे उस महिला को भी सुकून महसूस होगा और बेचारगी का भाव भी उत्पन्न नहीं होगा.

पति के बाद अधिसंख्य महिलाएं अपने बच्चों और अपने परिवार को संभाल लेती हैं, जबकि पुरुष तो इस स्थिति में जी ही नहीं सकता, उसे तो तुरंत दूसरे औरत की जरूरत हो जाती है. बच्चे हैं तो उसके पालन पोषण की आड़ में और अगर नहीं हैं, तो फिर कहना ही क्या.

दूसरा शब्द है सौतन. एक पुरूष जब दो शादी करता है तो उसकी दोनों पत्नियों के बीच के संबंध को सौत या सौतन शब्द से परिभाषित किया जाता है. शब्द को प्रयुक्त भी इस तरह से किया जाता है मानो दोनों एक दूसरे की दुश्मन हों. मैं बहुविवाह का समर्थन नहीं कर रही हूं, लेकिन एक पत्नी की मृत्यु या तलाक के बाद किये गये विवाह संबंधों में भी इस तरह के शब्द ही प्रयुक्त होते हैं.

 हमारी परंपरा में अगर दशरथ की तीन रानियां हैं, तो द्रौपदी के पांच पति भी हैं, फिर हमने सौतन शब्द तो ईजाद कर लिया, लेकिन पुरूषों के लिए ऐसा कोई शब्द ईजाद नहीं किया. यह तो गलत बात है, शब्दकोश पर भी एकाधिकार तो नहीं चलेगा . मैं ऐसे किसी शब्द की मांग पुरुषों के लिए नहीं कर रही हूं, बस महिलाओं के लिए ऐसे शब्द प्रयुक्त ना करे की मांग कर रही हूं.

रजनीश आनंद
24-08-16

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