सोमवार, 29 अगस्त 2016

...जीवन मेरा तुम संग

कितने पल, कितने दिन
माह और वर्षों मैंने बिताये हैं
तुम्हारे इंतजार में घड़ियां गिन-गिन
मन में मूरत है तो है तुम्हारी
किंतु साकार छवि की चाह है मुझे
जब थाम कर हाथ मेरा
तुम चलो पगडंडियों पर
और मैं तुम्हारे पीछे फिरूं
बिलकुल वैसे जैसे पतंग के पीछे डोर
तुम्हारी खिलखिलाहट से दिन ढले
और रात हो मदहोश
निहारते-निहारते तसवीर तुम्हारी
कब मैं, तुम बन गयी ना मालूम
अब तो चाह है चूमकर
हथेलियों को तुम्हारे
थाम लूं मैं उन्हें ताकि
सफल हो जीवन मेरा तुम संग.
रजनीश आनंद
29-08-16

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