सोमवार, 22 अगस्त 2016

कन्या पूजन

दुर्गा पूजा के मौके पर होने वाली कन्या पूजा
बचपन में बहुत खुशी देती थी मुझे
पास-पड़ोस में ढेर सारी बच्चियों का जमघट
मिष्ठान, व्यंजन और भेंट तो देते थे थोड़ी खुशी
लेकिन जब दादा-दादी की उम्र के लोग भी
छूते थे पांव, तो खुद पर होता था गर्व
पता चला नारी तो आदिशक्ति है, उसका सम्मान जरूरी है
लेकिन समय के साथ यह गर्व धूल धूसरित हो गया
मेरे उसी शरीर को जिसे बचपन में पूजते थे लोग
जवानी में हवस की आग में जलकर घूरने लगे
शरीर के भूखे लोग, मांस नोंच कर खा जाने को आतुर
बिना मेरी मरजी जानें, उनकी नजरें जब भेदती हैं
मेरी कपड़ों को और पहुंचना चाहती हैं
मेरे अंगों तक , तब घृणा होती है मुझे
अपने शरीर से, अभिशप्त महसूस करती हूं
पाकर एक औरत का शरीर और मन में
उठता है एक ही सवाल? यह कैसा कन्या पूजन?

रजनीश आनंद
22-08-14

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