मंगलवार, 24 जनवरी 2017

क्या मैं अकेली थी?

क्या मैं अकेली थी?
नहीं तो भीड़ से घिरी थी,
बस उस भीड़ में कोई मेरा ना था
क्या मैं बहुत उदास थी?
नहीं तो मैं खिलखिला रही थी,
बस वो खुशी मेरी ना थी
क्या चांद चमकीला ना था?
नहीं तो चांद निहायत ही खूबसूरत था,
बस मुझे किसी का अक्स नजर नहीं आता था
अब अकेली तो हूं मैं,
पर भीड़ में कोई अपना सा
चेहरा नजर आता है
अब खिलखिला रही हूं मैं
क्योंकि तुम्हारी बातें गुदगुदा सी जाती हैं
और थिरक उठती है होंठों पर हंसी
चांद अब निहायत ही चमकीला हो गया है
क्योंकि जब भी उसकी ओर देखती हूं,
नजर आते हो तुम,
जो जकड़ना चाहता है मुझे प्रेमजाल में...

रजनीश आनंद
24-01-17

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