शनिवार, 21 जनवरी 2017

तुम्हारी महक...

मेरी जिंदगी में इस कदर शामिल हुआ तू
ना जाने कब मेरे लैपटॉप से बॉल पेन तक में
बिखर गयी तुम्हारी महक .
यूं तो किसी को मैं ऐसे ही नहीं देती यह हक
पर ना जानें कैसे मेरे मन ने मुझसे
पूछे बिना ही तुम्हें दे दिया यह अधिकार
मैंने मन का विरोध भी नहीं किया
क्योंकि एक सहमति, एक खुशी सी थी मस्तिष्क में
मन-मस्तिष्क ने स्वीकारा है तुम्हें संपूर्णता के साथ
तभी तो भोर होती है तुम्हारी मुस्कान के साथ
और रात तुम्हारे अपनेपन के साथ
किशोरवय का आकर्षण नहीं ये
सोची-समझी स्थिति है, ठहराव के साथ
प्रेम तुम्हारा, प्रेरणा मेरी जिंदगी का
जिसके दम पर पाना चाहती हूं
मैं अपने हिस्से का आकाश
और उस आकाश पर लिख देना चाहती हूं
तुम्हारा नाम, ताकि आजीवन बिखरी रहे
मेरे जीवन के हर कोने में तुम्हारी महक...

रजनीश आनंद
21-01-17

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