सोमवार, 9 जनवरी 2017

क्षमाप्रार्थी हूं मैत्रेयी पुष्पा मैम, लेकिन मैं आपसे असहमत हूं


क्षमायाचना. जी हां मैं यह लिखते वक्त क्षमा पहले चाहती हूं. कारण यह है कि मैं जिनके विचारों से असहमति जता रही हूं वह मेरे लिए परम श्रद्धेय हैं और उनके अनादर का विचार सपने में भी मेरे मन में नहीं आ सकता. मैं बात कर रही हूं परम आदरणीय मैत्रेयी पुष्पा जी की. कल मैंने उनका एक इंटरव्यू शब्दांकन डॉट कॉम पर पढ़ा. एक शानदार इंटरव्यू है, लेकिन उसे पढ़ते वक्त एक जगह पर मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं उनसे असहमत हूं, तो मैं सिर्फ असहमति जता रही हूं और कुछ नहीं.

इस इंटरव्यू में मैत्रयी पुष्पा ने कहा है- सेक्स प्रेम की मृत्यु है. यह मैत्रयी मैम के निजी विचार हो सकते हैं, लेकिन इसे शाश्वत सत्य नहीं माना जा सकता. कोई इंसान, जो प्रेम में हो वो सेक्स तब करता है, जब उसे यह पक्का यकीन हो जाता है कि हां यही वह व्यक्ति है जिससे मुझे अथाह प्रेम है. ऐसे में सेक्स उनके प्रेम को और मजबूती देता है ना कि मृत्यु का कारण बनता है. हां, यहां मैं बलात्‌ सेक्स की बात नहीं कर रही, बल्कि सहमति से बनाये गये शारीरिक संबंध की बात कर रही हूं. जहां बलात्‌ सेक्स होता है वहां मात्र शारीरिक भूख होती है, प्रेम नहीं होता है. प्रेम तो जबरन किया जाने वाला मनोभाव ही नहीं है. यह तो किसी को स्वीकार्य करने की आदर्श स्थिति है. जब इंसान तमाम अहंकार, मेरा-तुम्हारा और स्वार्थ जैसे दुर्गुणों को त्याग कर एक होते हैं. जैसा राधा-कृष्ण का प्रेम. जो तमाम बंधनों और परंपराओं के मुक्त होने के बावजूद आज भी आदर्श है.  

सेक्स तो प्रेम की जरूरत है, महज आत्मिक प्रेम एक टीस पैदा करता है, जबकि शारीरिक प्रेम उस टीस का इलाज है. अपने प्रेमी/प्रेमिका के आलिंगन में जो सुख है, वह सुख उसे दूर से देखने मात्र से मिल पाता है क्या? क्या प्रेमपूर्ण एक आलिंगन, एक चुंबन प्रेम को और गहरा और ऊर्जावान नहीं बनाता है? एक शरीर से मोह होना स्वाभाविक है, क्योंकि वह एक इंसान की पहचान है, जिससे हमें प्रेम होता है, फिर उस शरीर का प्रेम कैसे मृत्यु तुल्य हो जायेगा? हां, मैं उनकी इस बात से सौ फीसदी सहमत हूं कि शादी सेक्स करने का लाइसेंस देता है, लेकिन शादी में हुए सेक्स में प्रेम होता है या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है. हमारे देश में आज भी सामाजिक बंधनों में बंधे लोग अपने प्रेम को उस तरह से नहीं स्वीकार कर पाते, जिस तरह से वे अपने प्रेम को जीते हैं, क्योंकि ऐसा करने से उनके प्रेम को नाजाजय संबंध का टैग दे दिया जाता है.

बस यही कारण है कि लोग अपने प्रेम की कब्र खुद खोद लेते हैं और उसका अंत हो जाता है. चलिए यह मान लिया जाये कि समाज के संचालन हेतु नियम कायदे होते हैं, मर्यादा होती है, तो क्या प्रेम की कोई मर्यादा नहीं है. प्रेम में इंसान अपने साथी का कभी अपमान नहीं करता, ना ही उसका बुरा चाहता है. प्रेम के लिए पति-पत्नी का टैग होना जरूरी नहीं है, यह तो एक सुखद अनुभूति है, जिसके लिए विशाल हृदय चाहिए. हां यह बात सोलह आने सच है कि सेक्स प्रेम की गारंटी नहीं है, लेकिन यह बात भी बिलकुल सही नहीं है कि प्रेम में अगर सेक्स हो तो प्रेम की मृत्यु हो जाती है.



रजनीश आनंद
10-01-17

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें