शनिवार, 28 जनवरी 2017

आ जाओ एक बार कि...

आ जाओ एक बार
कि
कहना है कुछ मुझे
सीने से लगकर तुम्हारे
जीना है चंद पल मुझे
बिंदिया सजा मैं माथे पर
रचती हूं हर रोज सपना हसीन
कि
हौले से आकर तुम
चूम लेते हो पेशानी मेरी
आ जाओ अब तुम
कि
फीकी चाय भी मीठी लगने लगी
जिंदगी में इस कदर
सराबोर हो तुम
कि
सांसें तुम्हारे नाम पर चलने लगी
ख्वाहिश है, मैं टांक दूं 
तुम्हारी कमीज के कुछ टूटे बटन
और कुछ को छिपा लूं.
अब बेचैन है मन
कि
तुुम्हारे पीठ पर
लिखना है मुझे अपना नाम
भरना तुम्हें है बांहों में
जैसे तुम ना जाओ कभी
आ जाओ एक बार
कि ...

रजनीश आनंद
28-01-17

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें