सोमवार, 16 जनवरी 2017

रिक्तता का बादल

आज अकेली बैठ ज्यों
अनायास मैंने पलटी
जिंदगी की किताब
एक रिक्तता का बोध
कलेजे को कस गया
चीख निकलने को हुई
लेकिन मजबूरियों ने
चीख को कंठ में ही रोक लिया
अश्रु छलक गये, लेकिन
फिर मन में आयी एक बात
जीवन में हर निर्णय सही तो नहीं होते
कुछ सही, कुछ गलत होते हैं
फिर क्यों इतना शोक, इतना मातम
इस निर्णय का दोष किसी के सिर नहीं
कोई दोषी नहीं, मैं उस निर्णय के लिए
उपयुक्त पात्र नहीं थी,
पर कोई अफसोस नहीं मुझे
मैंने सही समझकर निर्णय लिया था
जो मिला, जो खोया
सब जिंदगी के सफर के सहयात्री थे
जिंदगी में प्रयोगधर्मिता है जरूरी
सो छलके आंसुओं को सहेजा मैंने
सोचा जिंदगी के प्रयोग में
कुछ रिश्ते वाष्प बनते हैं
तो कुछ ठोस भी शेष  रहते हैं
जिंदगी के फ्यूजन में
हमेशा सही धुन नहीं बजता
मन को मजबूत कर ज्यों
मैंने आगे के पृष्ठों को देखा
तो जिंदगी का एक शानदार समागम
मानो मेरी ही प्रतीक्षा में था खड़ा
रिक्तता का बादल
अब छंटने लगा था मानो
मैंने खुलकर ली सांस, तो
प्रतीत हुआ अनंत है आकाश ...

रजनीश आनंद
16-01-17

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें