मंगलवार, 3 जनवरी 2017

...यह समझो औरतों और चुप रहो

नये वर्ष के स्वागत में लोग जुटे हों, चारों ओर खुशी का वातावरण हो, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 1500 पुलिसकर्मी भी तैनात हों, तभी कुछ लोग महिलाओं के साथ बदसलूकी करने लगे, उनके ना चाहते हुए भी उनके शरीर को हाथ लगाने लगे और महिलाओं की स्थिति यह हो जाये कि वे वहां से भागने लिए मजबूर हो जायें और पुलिस वालों से मदद की गुहार लगायें, लेकिन शोहद्दे अपनी हरकतों से बाज ना आयें, तो इस पूरे घटनाक्रम में दोष किसका कहा जाये? नि:संदेह महिलाओं का भाई! अरे नववर्ष का स्वागत करने का अधिकार पुरुषों को है बेकार में महिलाएं उतावली हो जाती हैं. जश्न तो पुरुष मनाते हैं, महिलाएं तो उनके जश्न मनाने का जरिया हैं, तभी तो जब जश्न के दौरान महिलाएं सहज उपलब्ध हो गयीं, तो उन्होंने एक युवती के कपड़े तक उतार दिये.

अरे लड़कियां तो बिन कपड़ों के ही अच्छी लगती हैं, वो तो अपनी बहू-बेटियों को लोग पूरे कपड़े में, या यूं कहें कि बुर्के में देखना पसंद करते हैं. बेंगलुरू में महिलाओं के साथ जो हुआ, वह बिलकुल सही तो है, जहां पेट्रोल होगा वहां आग के आने से आग तो लगेगी ही, भड़केगी ही. अरे भाई महिलाओं को तो सगे भाइयों और पिता के साथ भी कमरे में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि इससे शैतान जाग उठता है, तो फिर इन लड़कों का तो उन युवतियों से कोई संबंध भी नहीं था, फिर ये सब तो होना ही था.

सही है. जिनके दिमाग में कबाड़ भरा हो उसके लिए पूरे कपड़े में औरत हो या बिना कपड़ों के क्या फर्क पड़ता है. उसकी नजर तो देह पर होती है, वह औरत को इंसान नहीं वस्तु समझता है, जिसे उसे भोगना है. सही है भोगने का सुख तो सिर्फ उसे चाहिए चाहे औरत की मरजी हो या ना हो. क्योंकि कामेच्छा तो सिर्फ पुरुषों के अंदर होती है, औरत तो बेजान है, संवेदनाशून्य. उसकी कोई इच्छा नहीं, कोई मरजी नहीं.

 अरे यहां तो अपना पति इच्छा-अनिच्छा की परवाह नहीं करता तो भीड़ का क्या है? सही तो किया, भीड़ ने. बिना भाई-बाप के मॉडर्न ड्रेस पहनकर महिलाएं नये वर्ष का स्वागत करेंगी, तो यह सब तो होगा ही. रोने-चिल्लाने की कोई जरूरत नहीं लड़कियों, चुप रहो, सबकुछ झेल जाओ. सड़क पर कोई हाथ लगाता है, तुम्हारे प्राइवेट पार्ट छूता है, तो क्या? छूने दो, तुम वस्तु हो, लोग छू-छा कर तो देखेंगे ही, वे इंसान हैं. चुप रहो तुम. सड़क पर, घर में जो चाहे जहां चाहे, तुम्हें हाथ लगा सकता है. लेकिन अगर तुम अपनी इच्छा के साथ किसी के साथ रहो, अगर वह तुम्हारा पति नहीं, तो तुम चरित्रहीन हो, यह जानो, चरित्रवान तो वो हैं, जो तुम्हारी मरजी जानें बिना तुम्हारे शरीर को छूते हैं. यह समझो औरतों और चुप रहो, क्योंकि बोलने पर इज्जत तुम्हारी जाती है, पुरुषों की नहीं. पूरे समाज की इज्जत का टोकरा तुम्हारे सिर जो लदा है.

रजनीश आनंद
04-01-17

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