सोमवार, 23 जनवरी 2017

...और कसें हम-तुम

वसंत की दस्तक के साथ ही
इठलाती ठंड कुछ सहम सी गयी है
सर्द रातों में अलाव के सहारे
जीते लोगों ने ली है राहत की सांस
ऋतुराज के आगोश में
आम के पेड़ों पर महक उठी मंजरी है
बगिया में एक साथ खिल उठे कई फूल हैं
ऐसे खुशनुमा माहौल में मेरा मन आतुर है
तुम संग कुछ पल जीने को
जब हाथों में लेकर तुम्हारा हाथ
मैं कह सकूं, तुम साध्य मेरे जीवन के
हां, अब नहीं कोई चाह शेष है.
देखो ना वसंत को भी है ज्ञात
बात मेरे मन की, तभी तो
उसने हवाओं से कह दिया है
जो गुजरे मेरे नजदीक से
तो पहले कर आयें तुम्हारा स्पर्श
तुम्हारी खुशबू से सराबोर हूं मैं
इंतजार है मुझे उस पल का जब
वसंत के सानिध्य में
गूंजे हमारी खिलखिलाहट
और कसें हम-तुम
प्रेम आलिंगन में
क्योंकि मुझे तुमसे प्रेम है
अथाह प्रेम...बस प्रेम...
रजनीश आनंद
24-01-17

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