रविवार, 12 मार्च 2017

प्रेम गुलाल

तुम बिन सीने में हूक सी उठी
तो खुद को खुद को समझाने
मैं चली आयी झरोखे पर
पूनम के चांद ने दूधिया रोशनी में
नहला दिया था पूरे संसार को
मनमोहक था नजारा
मानों प्रिये की बांहों में सिमटी हो प्रेयसी
इस नजारे ने मेरी तड़प को दुगुना किया
और मैं देने लगी चांद को उलाहना
एक तो मेरा प्रिये पास नहीं मेरे
और तू प्रेममय है?
मैं क्या करूं तेरा जब वो पास नहीं मेरे
शिकायती अंदाज में मैंने देखा जो उसे
लगा तुमने दी हो आवाज,
अधीर न हो प्रिये, इस होली मैं भले ना लगा पाऊं
अपने हाथों से तुम्हें गुलाल
लेकिन खुद को जरा आइने में तो देखो
मेरे प्रेम के लाल गुलाल में सराबोर हो तुम
इस रंग में ऐसे दमकता है तुम्हारा चेहरा
जैसे वसंत में खिला गुलाब हो
तुम दूर ही सही लेकिन महसूस करो मुझे
जैसे तुम सिमटी हो बांहों में मेरे
और मेरे प्रेम ने कर लिया है तुम्हारा स्पर्श
तभी तो हर रंग से सुंदर दिख रहा है हमारा प्रेम रंग...

रजनीश आनंद
12-07-17

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