शनिवार, 11 मार्च 2017

फिशपॉट

मेरे कमरे के कोने में
पड़ा है एक फिशपॉट
चार-पांच मछलियां
हमेशा तैरती दिखतीं हैं
कमरे होने वाली हर
हलचल से दूर पानी में गोते खातीं हुईं
बिलकुल वैसे ही जैसे
मेरी दुनिया सिमटी है तुम्हारी बांहों मेंं
जब तुम अपनी बांहों को खोलकर
कहते हो आओ प्रिये
और समेट लेते हो मुझे
तो मैं कहना चाहती हूं
बहुत कुछ अपने मन की
लेकिन जुबान साथ नहीं देते
हलक तक आकर रह जातीं हैं बातें
हां, तुम चाहो तो पढ़ लो मेरी आंखें
इनमें अंकित हैं मेरे मन की बातें
तुम बिन कितनी रातें मैंने
आंखों में बिताई, कितने सपने संजोए
इसपर साफ लिखा है
तुम्हारे स्पर्श की नरमाई,सिहरन और
जादुई बातें हैं मेरे जीवन का फिशपॉट
जिनमें डूबकर जीना चाहती हूं मैं...
रजनीश आनंद
11-03-17

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