मंगलवार, 7 मार्च 2017

तुम्हारे नाम की गूंज...

हिज्र की रातों में
आंखें मूंदें मैं लेना चाहती हूं तुम्हारा नाम
एक बार नहीं, कई बार
ताकि महसूस कर सकूं तुम्हें
मैं जितनी बार पुकारती हूं तुम्हारा नाम
तन-बदन में मौजूद सिहरन
और तड़प दे जाती है सुकून
मैं खोना चाहती हूं
तुम्हारे नाम की गूंज में
ताकि फिजाओं में गूंजें
हमारे मिलन की ध्वनि
और तुम आकर मेरे
कानों में फुसफुसा जाओ
तुम मेरी, हां सिर्फ मेरी हो
फिर कुछ और सुनने की
चाह शेष रह जायेगी क्या भला?
रजनीश आनंद
07-03-17



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