बुधवार, 1 मार्च 2017

ठूंठ बना रिश्ता

क्यों ठूंठ बन गया हमारे रिश्ते का पौधा?
कभी जानने की कोशिश की तुमने?
याद करो वो दिन, जब बड़े उत्साह से
हमदोनों ने रोपा था अपने रिश्ते का बीज
रोज पानी से सींच कर मैंने उसे अंकुरित किया थ
तुम भी तो खुश थे उसके शैशव रूप को देखकर
उसकी हरी-हरी पत्तियां मन को लुभाती थीं
मैं तो अकसर उन पत्तियों को छूकर 
जी लेती थी अपने रिश्ते की गहराई को
वह झाड़ का रूप ले चुका था, लेकिन
चाह थी मेरी कि वह बन जाये बरगद
ताकि भरी दुपहरी में उसकी छांव हमें शीतलता दे
और जब जी चाहे हम-तुम उसकी मजबूती से पा लें सहारा
लेकिन आह!! ये हो ना सका
बरगद का सपना, आंखों से आंसू बन बह गया
समय ने नहीं दिया हमें उस पेड़ को सींचने का मौका 
और तुमने उठा दिया उस पौधे के अस्तित्व पर सवाल
मुझे लगा जैसे जीवन ही शेष नहीं बचा
लेकिन मैंने कसम खाई, नहीं-नही
मैं मरने नहीं दूंगी इस पौधे को
मैं सींचूगी इसे, बरगद बनाऊंगी
इसके फूल और फल को पुष्पित होने का पूरा मौका दूंगी
मैं जुटी रही अपने प्रयासों में
कोई दिन ऐसा नहीं गया जब
मैंने उस पौधे की थाह ना ली हो
जब मैं उसके पास जाती वो
निरीह नजरों से मुझे देखता भी था
उसे तुम्हारी तलाश थी, लेकिन 
उसकी आस नहीं हुई पूरी
पौधा था तो कुछ फल भी आय
लेकिन वो फल भी नहीं बदल सके
इरादा तुम्हारा और विपरीत परिस्थितियों की मार में
अंतत: ठूंठ हो गया हमारे रिश्ते का पौधा
ना तो मेरे आंसू, ना निवेदन बचा सका इस पेड़ क
मैंने कारण बहुत जानने की कोशिश की
आखिर क्यों मृत हुआ यह पेड़
तो ज्ञात हुआ उसकी जड़ हो चुकी थी खोखल
फिर पौधा, पेड़ कैसे बनता?
अब जबकि कुछ भी नहीं है शेष
तुम्हें अचानक क्यों यह सवाल परेशान कर रहा है
कि क्यों मर गया वो पेड़?
अब पेड़ को बचाने के लिए
मेरे पास ना तो ऊर्जा बची ना आस
इसलिए ना पूछो ये सवाल
खुश रहो, क्योंकि मैं ये नहीं भूली कि
हमने साथ बोया था रिश्ते का बीज
भले ही बरगद ना बन पाया वो
लेकिन अफसोस नहीं मुझे इस बात का
जो हुआ वो अच्छे के लिए हुआ होगा
शायद हमारे रास्ते कभी एक ना थे
तभी तो ठूंठ हुए रिश्ते को देख
अब सिहरन भी नहीं होती मुझे...
रजनीश आनंद
01-03_17

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें