शुक्रवार, 3 मार्च 2017

मुट्ठी में खुशी...

जिंदगी की जद्दोजहद ने
छिन ली थी मेरे होंठों की हंसी,
जो मुस्कान दिखती थी
वो दरअसल झूठ का पुलिंदा थी
खोखली हंसी, जिसकी गूंज में
साफ सुनाई पड़ जाती थीं मेरी सिसकियां
मेरा दिल हमेशा कहता था मुझसे
सुन ले तू कभी मेरी भी, तो
आज उसकी बात का असर
दिख गया मुझपर और
मैंने जिंदगी के दामन से
एक चीज चुराकर
कस कर जकड़ लिया है मुट्ठी में
सोचा है अब कभी नहीं छोड़ूगी उसे
परिस्थिति चाहे लाख विकट हो,
तभी मेरी नजर राह चलते
एक बच्चे पर पड़ी
धूल से सने, उस फटेहाल बच्चे की
नजर मेरी मुट्ठी पर थी
शायद वो जानना चाह रहा था
मेरी मुट्ठी का रहस्य
मैं घबराई, सोचा कहीं इसकी नजर
मेरी उस संपत्ति पर तो नहीं
जिसे चुराया था मैंने जिंदगी के दामन से
शायद उसने पकड़ ली थी मेरी चोरी
सहसा वो मेरे नजदीक आया
मेरी आंखों में झांकर कहा उसने
जो तेरी मुट्ठी में है उसे बांट मेरे संग
तेरी खुशी दोगुनी हो जायेगी
मैं उससे बचना चाह रही थी
लेकिन वो मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था
मैंने सोचा जब इसे पता ही है
मेरी चोरी का, तो बांट लेती हूं
उस खुशी को जिसे चुराकर रखा था
मैंने अपनी मुट्ठी में कैद करके
बच्चे के सामने मैंने ज्योंही खोली मुट्ठी
उसके होंठों पर थिरकी मुस्कान और आंखों में चमक
उसकी खुशी देख मैं खिलखिला उठी
लेकिन उसकी गूंज से सिसकियां गायब थी
बस सुनाई दिया था , तो सिर्फ तुम्हारे आने का संदेश...
रजनीश आनंद
03-03-17

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